19-11-79  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बेहद के वानप्रस्थी अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप

आज बाप-दादा सर्व बच्चों के भाग्य के गुण गा रहे थे। बाप बच्चों के भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं को देख हर्षित होते हैं। भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं में विशेष क्या-क्या बातें देखी जाती हैं। वह जानते हो? मुख्य बात तिथि अर्थात् तारीख, समय, विशेष ग्रह, कुल, धर्म और सम्पत्ति, सम्बन्ध और आक्यूपेशन देखा जाता है। इन सब बातों से भाग्य को देखते हैं।

सर्वोच्च भाग्यशाली

आप सभी अपनी इन सब बातों को अच्छी तरह से जानते हो? आप सबकी तिथि कौन-सी है? आज तक भी अपने भाग्य को जन्म की तारीख से या राशि से देखते हैं। तो आप सबकी राशि और तारीख कौन-सी है? जन्म की तारीख कौन-सी है? आप सब कब अवतरित हुए? ब्राह्मण कब अवतरित हुए? जो बाप के अवतरण की तारीख है वह आपकी है। ब्रह्मा सहित ब्राह्मण भी पैदा हुए। तो जो आदि रतन हैं उनकी तारीख कौनसी कहेंगे? बाप के अवतरण की तारीख आदि रतनों के जन्म की तारीख है। समय कौन-सा है? यह संगम ब्रह्मा मुहूर्त का समय है। तो सभी के जन्म का समय है - ब्रह्म मुहूर्त और राशि कौन-सी है? लौकिक राशियाँ तो भिन्न-भिन्न प्रकार की दिखाई हैं लेकिन आप सबकी राशि जो बाप की राशि है विश्व-कल्याणकारी, वही आप सबकी राशि है। जिस राशि में सर्व बाप के समान गुण समाये हुए हैं। और दशा भी गुरूवार की दशा है। कुल भी सर्वश्रेष्ठ है। डायरेक्ट ईश्वर के कुल के हो, ईश्वरीय कुल है। पोजीशन-मास्टर सर्वशक्तिवान हो। सम्पत्ति-अखुट और अविनाशी सम्पत्ति है। धर्म - ब्राह्मण चोटी के हो। बुद्धि की लाइन विशाल और त्रिकालदर्शी लाइन है। अब सोचो इससे अधिक भाग्य की रेखायें और किसी की श्रेष्ठ हो सकती हैं। कर्म-रेखा में निरन्तर कर्मयोगी, सहजयोगी, राजयोगी - यह रेखा बाप ने स्पष्ट खींच ली है। भाग्य के सितारें में ताज और तख्त दिखाई देता है। इससे श्रेष्ठ भाग्य और क्या होगा?

गुड़ियों का अनोखा खेल

आज बाप-दादा सदा सर्व भागय को देख रहे थे। जैसे बाप सर्व के भाग्य को देख हर्षित होते हैं वैसे आप सभी स्वयं के भाग्य को देख हर्षित होते हो? छोटी-छोटी बातों में भाग्य को भूल तो नहीं जाते? यह छोटी-छोटी बातें क्या हैं? जैसे भक्ति वालों को कहते हो कि यह पूजा आदि गुड़ियों की पूजा हैं, गुड़ियों को खेल खेलते हैं। जन्म भी देते हैं, सजाते भी हैं, पूजते भी हैं, और फिर डुबोते भी हैं, तो इसको आप गुड़ियों की पूजा वा गुड़ियों का खेल कहते हो। ऐसे ही मास्टर भाग्य-विधाता बच्चे भी इन छोटी-छोटी बातों की गुड़ियों को खेल बहुत करते हैं। रीयल बात नहीं होती लेकिन हिसाब-किताब चुक्तु होने के लिए व धारणाओं का पेपर लेने के लिए व अपनी स्थिति की चेकिंग होने के लिए यह बातें जीवन में नये-नये रूप से आती रहती हैं। निर्जीव बातें, असार बातें - लेकिन जब सामने आती हैं, जैसे वह जड़ मूर्ति में प्राण भर देते हैं और इतना विस्तार बना देते हैं वैसे आप सभी भी कभी ईर्ष्या की गुड़िया, कभी वहम की गुड़िया, कभी अनुमान की गुड़िया, कभी आवेश की गुड़िया, कभी रोब की गुड़िया, अर्थात् मूर्ति बनाकर बात रूपी गुड़िया में प्राण भर देते हो? और अनुभव करते और कराते हो कि यह सत्य है। यही बात ठीक है - यह प्राण भर देते हो। और, फिर क्या करते हो? आप लोगों का गीत बना हुआ है ना - डूब जा, डूब जा...तो क्या करते हो? उसी बात रूपी मूर्ति को आगे-पीछे की स्मृतियों से खूब सजाते हो। साथ-साथ जैसे वह भोग लगाते हैं देवी को अथवा मूर्ति को वैसे आप भी कौन-सा भोग लगाते हो? ज्ञान की पॉइन्टस उल्टे रूप से सोचते हो अर्थात् भोग लगाते हो। यह तो होता ही है, यह तो सबमें होता है। ड्रामा अनुसार पुरुषार्थी हैं, कर्मातीत तो अन्त में बनना है। इसी प्रकार के ज्ञान की भिन्न-भिन्न वैराइटी पॉइन्टस रोज़ भोग लगाते-लगाते मज़बूत कर देते हो, पक्का कर देते हो। पहले कच्चे भोजन का भोग लगाते फिर पक्का कर देते हो। और फिर उन पॉइन्टस को अर्थात् भोग को अकेले नहीं खाते, अपने साथ-साथ पण्डे, कुटुम्ब भी बिठाते हो अर्थात् और भी परिवार के साथी बनाते हो, उन की बुद्धि को भी यह भोजन स्वीकार कराते हो। लेकिन अन्त में क्या करना पड़ता हैं, ज्ञान-सागर बाप की याद में बीती-सो-बीती के ज्ञान-सागर की लहर में, स्व उन्नति की लहर में, हाई जम्प लगाने की लहर में, स्मृति स्वरूप की स्मृति की लहर में, मास्टर नालेज़फुल स्वरूप की लहर में, इन अनेक लहरों के बीच इन गुड़ियों को अथवा मूर्तियों को डुबोना ही पड़ता है। लेकिन इतने सारे समय को क्या कहेंगे? इस सारे गुड़ियों के खेल को,जैसे भक्ति वालों को कहते हो वेस्ट आफ टाइम और मनी, वैसे ही संगम का सर्वश्रेष्ठ समय और ज्ञान वा शक्तियों के खज़ाने को इतना व्यर्थ कर देते हो। तो यह छोटी-छोटी बातें क्या हुई? गुड़ियों का खेल। इस खेल में कभी भी अपने को व्यस्त मत करो। सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को देखो।

वर्तमान समय के प्रमाण अभी वानप्रस्थ अवस्था के समीप हो। वानप्रस्थी गुड़ियों का खेल नहीं करते हैं। वानप्रस्थी एकान्त और सुमिरण में ही रहते हैं। तो आप सब बेहद के वानप्रस्थी सदा एक के अन्त में अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप रहो। यह है बेहद के वानप्रस्थी की स्थिति (बाप-दादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) यह स्थिति अच्छी नहीं लगती? जो चीज़ अच्छी लगती है वह तो सदा याद रहती है। अब बाप व आप क्या चाहते हो? एक ही बात चाहते हो बाप और बच्चे समान हो जाएं। सदा याद में समाये रहें। समाना नहीं चाहते हो! समान बनना ही समाना है। समझा? कि बाप क्या चाहते हैं वा आप क्या चाहते हो?

यह सीज़न स्वरूप देखने की है या सिर्फ सुनने की है! फिर सुनायेंगे कि समय क्या पुकार रहा है! भक्त क्या पुकार रहे हैं! दुखी, अशान्त आत्मायें क्या पुकार रही हैं! धर्म- नेतायें, वैज्ञानिक, राजनैतिक क्या पुकार रहे हैं! प्रकृति भी क्या पुकार रही है! सबकी पुकार - हे उपकारी आत्मायें, सुनने में आती हैं या गुड़ियों के खेल में ही बिज़ी हो? अच्छा - फिर सबकी पुकार सुनायेंगे। आप लोग भी कल अमृतवेले सुनना।

सदा भाग्य को सुमिरण करने वाले, सदा बाप के समान, याद में समाये हुए निरन्तर एकान्तवासी, हर घड़ी को सफल बनाने वाले सफलतामूर्त्त, भक्ति के खेल समाप्त कर मास्टर ज्ञान-सागर स्वरूप, स्मृति और समर्थी स्वरूप, ऐसे पदमापदम भाग्यशाली बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात

मैसूर - सभी अपने को सर्वश्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हो जो स्वयं बाप बच्चों से मिलने के लिए अपने वतन को छोड़कर आते हैं। आधा कल्प गाया कि अपना वतन छोड़कर आ जाओ लेकिन यह मालूम नहीं था कि कब और कैसे मिलेगा, सिर्फ इन्तज़ार में दिन बिताये। अभी इन्तजार खत्म हुआ और सम्मुख मिलन मना रहे हो! ऐसा श्रेष्ठ भाग्य और किसी का होगा? स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि भगवान से बातें करेंगे। टोली खायेंगे, बैठेंगे और अभी प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो। प्राप्ति के आगे यह सफ़र भी क्या है? बाप कितने बड़े सफ़र से आते हैं। बाप का स्थान दूर है या आप का! जब खुशी होती है तो कोई भी थकावट व तकलीफ महसूस नहीं होती। रास्ते के चार दिन निरन्तर योगी की स्टेज होगी - कब मिलेंगे, कब पहुँचेंगे, तो निरन्तर योगी हो गये ना। यह भी कमाई हो गई ना। ब्राह्मण बनना माना हर कदम में कमाई। कष्ट भी कष्ट नहीं हैं लेकिन जैसे गुलाब के पुष्प के साथ काँटा भी होता है, वह काँटा उनके बचाव का साधन होता है। वैसे यह तकलीफ़ें और ही बाप की याद दिलाने के निमित्त बनती हैं। कोई भी प्रकार का जब दुख आता है तो नास्तिक के मुख से भी - ‘हे भगवान’ निकलता है। तो दुःख भी याद दिलाने का साधन हुआ ना। संगम पर कोई कष्ट हो नहीं सकता। इस समय आप बच्चे बाप के सर्व खज़ानों के अधिकारी हो। बाप का खज़ाना क्या है? सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम - यही तो खज़ाना है ना! तो अधिकारी और खुश ना रहे, यह हो कैसे सकता है। अमृतवेले सदा स्मृति का तिलक लगाओ कि हम अधिकारी हैं। अगर तिलक लगा होगा तो सदा हर्षित रहेंगे। तिलक को मिटने नहीं देना। माया कितना भी मिटाने की कोशिश करे लेकिन मिटाना नहीं तो सदा ‘अविनाशी भव’ का वरदान मिलता रहेगा। सिल्वर जुबली मना रहे हो लेकिन गोल्डन एज की स्थिति में रहकर सिल्वर जुबली मनाओ। अच्छी हिम्मत रखी है। रिज़ल्ट भी अच्छी है। अच्छे बुजुर्ग, अनुभवी और मेहनती बच्चे हैं, अच्छा सर्टिफिकेट है।

(विदेशी भाई-बहनों से)

सभी जैसे स्थूल देश के हिसाब से फारेनर्स हो वैसे ही आत्मा रूप से भी सदा अपने को फॉरेन अर्थात् परमधाम निवासी समझ कर चलते हो? सदैव यह अनुभव हो कि मैं आत्मा परमधाम से अवतरित हुई हूँ, विश्व-कल्याण का कर्तव्य करने के लिए। तो इस स्मृति से क्या होगा? जो भी संकल्प करेंगे, जो भी कर्म करेंगे, जो भी बोल बोलेंगे, जहाँ भी नज़र जायेगी, सर्व का कल्याण करते रहेंगे। यह स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी। उस लाइट हाउस से एक रंग की लाइट निकलती है लेकिन यहाँ सर्व शक्तियों के लाइट हाउस हर कदम आत्माओं को रास्ता दिखाने का कार्य करें। तो सदा इस स्मृति में रहो ताकि जो भी सामने आए वह समझे कि हम अखुट खज़ाने की खान के आगे आये हैं। आने से ही ऐसे महसूस करें कि मैं ऐसे स्थान पर पहुँच गया हूँ जहाँ से सर्व प्राप्तियाँ होनी हैं। विदेशियों को ऐसे चलते-फिरते लाइट हाउस बनकर सेवा करनी है। अगर एक ही स्थान पर इतने लाइट हाउस हो जायेंगे तो क्या रिजल्ट निकलेगी। सब वाह-वाह के गीत गायेंगे। सदैव एक चित्र अपने सामने रखो। जैसे आप लोग चित्र निकालते हो जिसमें अंगुली से ब्रह्मा भी शिवबाबा की तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसे आप सबका हर कर्म, हर संकल्प बाप की तरफ इशारा करे। तो चेक करो कि मेरा संकल्प इशारा करने वाला है। जब सर्व आत्माओं को बाप का इशारा मिल जायेगा तो आप के गुण गाने लग जायेंगे। जैसे अभी और-और गीत गाते हैं ना, वैसे चारों ओर सभी साज़ों द्वारा बाप और आपके गुणों का गीत गायेंगे। उस समय क्या सीन होगी और आप लोग कहाँ होंगे? (मधुबन में) सब मधुबन में भाग आयेंगे तो भक्त क्या करेंगे! उस समय आप सबका साक्षात्कार होगा कि यह बाप-दादा के दिलतख्तनशीन हैं। उस समय आप तख्तनशीन नज़र आयेंगे तब सारी दुनिया हाय-हाय करेगी और आप लोग उनको वरदान देंगे। ऐसा साक्षात्कार अपने आपको अपना होता है कि हम तख्तनशीन हैं।

ब्राह्मण अर्थात् अधिकारी। तो अधिकार लेना है वा जन्म से ही अधिकारी हो? बापदादा सभी को सदैव तख्त और ताजधारी देखते हैं। तख्त से उतर आते हो क्या? जो श्रेष्ठ आत्मायें होती हैं वह कभी भी बिना गलीचे के नीचे पाँव नहीं रखतीं। आप सबसे बड़े-से-बड़े हो तो तख्त से नीचे नहीं पाँव रखना। तख्त पर ही खाते हो, पीते हो, घूमते हो, चलते हो इतना बड़े-से-बड़ा तख्त है। समझा, फॉरेनर्स का क्या पोजीशन है। अभी फॉरेनर्स को जो सेवा दी है वह कहाँ तक की है? स्पीकर की आवाज़ कहाँ तक पहुँची है? किस स्पीड से चल रहा है, कब आवाज़ पहुँचेगी? 80 में या 81 में। जब सब तरफ के लाउड स्पीकर्स की आवाज़ यहाँ पहुँचेगी तभी कुम्भकरण जागेंगे। छोटी आवाज़ नहीं भेजना बड़ी भेजना। सभी इन्तज़ार कर रहे हैं। कि कब फारेन की आवाज़ से भारत के कुम्भकरण जागते हैं। अभी बुलन्द आवाज़ करो। फॉरेन सर्विस की रिज़ल्ट अच्छी है। अभी आगे क्या करना है? (प्लान सुनाया) प्लान तो अच्छा है, यह तो करेंगे ही लेकिन अभी ऐसा कोई वातावरण बनाओ जो वातावरण चुम्बक जैसा कार्य करे। चारों ओर फैल जाए कि अगर शान्ति, सुख या प्रेम चाहिए तो यहाँ से मिल सकता है। एडवरटाइज़मेन्ट हो जाए। आजकल वाणी की बजाय वायब्रेशन्स से प्राप्ति करने के इच्छुक ज्यादा हैं। स्पीच करो लेकिन उसके पहले ऐसे वातावरण की आवाज़ जरूर फैलाओ। सभी अनुभव करें - जैसे प्यासे की प्यास पानी से बुझ जाती है ऐसे आत्माओं की शान्ति, सुख की प्यास बुझ जाए। जैसे स्थापना के शुरू में एक दिन भी कोई सत्संग में आ जाते थे तो पहले दिन ही कुछ-न-कुछ अनुभव करके जाते थे। जो आदि में वह अन्त में िवस्तार के रूप में होना है। ऐसा कुछ वातावरण बनाओ। वह तब होगा जब आप सभी निरन्तर इस स्थिति में स्थित रहेंगे। फिर सूर्य की किरणों के मुआफिक सब अनुभव करेंगे। सबकी नज़र जायेगी कि यह कहाँ से किरणें आ रही हैं। ऐसा अभी पुरूषार्थ करना। सभी रिफ्रेश तो बहुत हो रहे हो, ऐसे रिफ्रेश हुए हो जो अनेको को रिफ्रेश करते हुए सदा रिफ्रेश रहें। इस बारी विशेष एक शब्द पर डबल अन्डर लाइन करके जाना। वह कौन सा? निरन्तर। चाहे संकल्प चाहे बोल लेकिन - ‘निरन्तर’ शब्द को डबल अन्डर लाइन करके जाना। याद की यात्रा में निरन्तर, ज्ञान स्वरूप में निरन्तर, धारणा में निरन्तर, सेवा में भी निरन्तर। चारों सबजेक्टस में निरन्तर को डबल अन्डर लाइन करके जाना। समझा - यह एक शब्द वरदान के रूप में ले जाना।

प्लान लम्बे नहीं बनाओ लेकिन प्रैक्टिकल के जल्दी के बनाओ, उसके लिए यही इशारा है अपना तन-मन-धन शक्तियाँ जितना जल्दी यूज़ करेंगे उतना फायदा है। अभी समय है, फिर टू-लेट हो जायेंगे। करने के लिए डेट का इन्तज़ार नहीं करो, कल भी नहीं, आज भी नहीं अभी करो। क्योंकि अगर डेट बतायेंगे तो बहुत समय का जमा नहीं होगा - डेट का जमा होगा। फिर डेट की इन्तज़ार में चले जायेंगे इन्तज़ाम कम करेंगे। डेट कान्सेस हो जायेंगे। सोल कॉन्सेस नहीं रहेंगे।

हर एरिया में सन्देश पहुँचाने की कोशिश करो जिससे कोई उलाहना न दें कि हमें पता नहीं हैं। सर्विस करते जाओ तो सब आपे ही ऑफर करेंगे कि यहाँ सेन्टर खोलो।

प्रश्न - सम्पर्क और सेवा दोनों में सफल बनने के लिए मुख्य कौन सी धारणा चाहिए?

उत्तर - सफलता तभी मिलेगी जबकि सदैव स्वयं को मोल्ड करने की क्वालिफिकेशन होगी। अगर स्वयं को मोल्ड नहीं कर सकते तो गोल्डन एज की स्टेज तक पहुँच न सकेंगे। जैसा समय जैसे सरकमस्टन्सिज (Circumstance) हों उसी प्रमाण अपनी धारणाओं को प्रत्यक्ष करने के लिए मोल्ड होना पड़े। मोल्ड होने वाले ही रीयल गोल्ड हैं। अगर मोल्ड नहीं होते तो रीयल गोल्ड नहीं हैं। जैसे साकार बाप की विशेषता देखी - जैसा समय, जैसा व्यक्ति, वैसा रूप। तो सदा सफलतामूर्त्त के लिए विशेष यह क्वालिफिकेशन चाहिए।

प्रश्न - एक धर्म एक राज्य और एक भाषा, ऐसी दुनिया कब स्थापन होगी?

उत्तर - जब सब ब्राह्मणों की स्थिति एकरस हो जायेगी। एकरस स्थिति अर्थात् हम सब एक हैं। एक बाप के बच्चे हैं। सर्वश्रेष्ठ आत्मायें। भले स्थूल देश भिन्न-भिन्न हैं, यह शरीर के देश हैं लेकिन आत्माओं का देश एक ही है। हरेक की एकरस स्थिति बन जाए तो बहुत जल्दी एक राज्य, एक भाषा, ऐसी दुनिया स्थापन हो जाएगी। जब से ब्राह्मण बने तो यही एक संकल्प धारण किया है कि ऐसा राज्य स्थापन करके ही छोड़ेंगे। ऐसा जहाँ सब एक ही एक होगा, स्थापन करने के लिए स्थिति भी एकरस चाहिए।

प्रश्न - निरन्तर योगी बनने का सहज साधन क्या है?

उत्तर - सदा दिलतख्तनशीन बनने से स्वत: ही निरन्तर योगी बन जायेंगे। वर्तमान समय बाप द्वारा जो ताज़ और तख्त मिला है उसको सदा कायम रखो। अभी का ताज़ व तख्त अनेक जन्मों के लिए ताज़ व तख्त प्राप्त कराता है। विश्व-कल्याण की ज़िम्मेवारी का कार्य भूलना अर्थात् ताज़ को उतारना। ताज उतरता तो नहीं है ना! तख्त है - बाप का दिलतख्त। जो सदा बाप के दिलतख्तनशीन हैं वह निरन्तर स्वत: योगी रहते हैं, मेहनत की कोई बात है ही नहीं। क्योंकि एक तो सम्बन्ध बड़ा समीप है तो मेहनत काहे की। दूसरे प्राप्ति अखुट है, जहाँ प्राप्ति होती हैं वहाँ स्वत: याद होती है। ऐसे स्वत: और सहज योगी हो कि मेहनत करनी पड़ती है।

टीचर्स से - टीचर्स अर्थात् सदा अपने फीचर्स द्वारा बाप के गुण प्रत्यक्ष करने वाली। हर कर्म से, हर समय बाप के गुण अपने कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करें - ऐसे ही हो ना। जो भी देखे वह यही कहे कि इनको सिखाने वाला उनसे परम शिक्षक कौन? आपको देखते ही बाप की याद आ जाए। आपका हर कर्म बाप की तरफ इशारा करने वाला हो। टीचर अर्थात् स्वयं और सर्व के प्रति विध्न विनाशक। छोटी-छोटी बातों के पीछे समय न गँवाने वाली। ऐसी टीचर्स ही बाप को प्रत्यक्ष कर सकती हैं। !